Sunday, September 4, 2011

भीड़ में अकेला

दिल तो बस धड़कते ही रह गए
भीड़ में बस अकेले ही रह गए
लभ रहे खामोश, नम रही आँखें
और कहनी थी जो बात, वो तो कोई और ही कह गए

तनहाइयों में आपको ढूंडते ही रह गए
सूनी इन गलियों में भटकते ही रह गए
ख़त्म हो गए रास्तें, मंज़िल फिर भी रही दूर
और काटनी थी साथ जो उम्र, उसे अकेले ही सह गए


पीछे जिनको छोड़ आये थे, वो याद बन के रह गए
जो हमारे थे पास, वो बस बात बन के रह गए
तय कर लिया था कितना, और कितनी थी राह बाकी
बस कदमों के निशाँ हम गिनते ही रह गए


लफ्ज़ों के जाल हम बुनते ही रह गए
सुलझने की कोशिश में और उलझते ही रह गए
ऊँचे थे ख्वाब, कम पड़ गए थे हौसले
और पार करना था जो समंदर, उसी में डूब के बह गए


दिल तो बस धड़कते ही रह गए
भीड़ में बस अकेले ही रह गए

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